Date : May 24, 2025

जीवन केवल चुनाव करने का नाम है। यहां तक कि एक छोटा बच्चा भी जानता है कि चॉकलेट मीठी होती है और वह उसे खाता भी है। हालाँकि एक वयस्क व्यक्ति अलग-अलग स्वादों में अंतर कर सकता है और यह तय कर सकता है कि उसे क्या खाना है और कितना खाना है! निर्णय हमें ही लेने पड़ते हैं। पृथ्वी पर अनेक विकल्प मौजूद हैं, जिनकी खोज की जानी बाकी है। कभी-कभी चुनाव करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हमारे सामने बहुत सारे विकल्प होते हैं! हम क्या पढ़ना चाहते हैं, किस तरह की नौकरी हमें संतुष्ट करेगी, हम अपनी जीवनशैली को कैसे बेहतर बना सकते हैं, हम कहाँ घूमना चाहते हैं - हमारे सामने कई तरह के विकल्प होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि, कुछ लोग जीवन में एक विशेष समय तक अपनी इच्छानुसार चुनाव करने की स्थिति में नहीं होते हैं। और, यह समझ में आता है। लेकिन मोटे तौर पर कहें तो वयस्कों को अपने फैसले खुद लेने का अधिकार है। बाइबल में एक वचन (यिर्मयाह 21:8) इसकी पुष्टि करता है, जहाँ परमेश्वर स्वयं कहते हैं कि उन्होंने हमें चुनाव करने का अधिकार दिया है। "तुम्हारे सामने जीवन का मार्ग और मृत्यु का मार्ग भी बताता हूँ।" वह हमें यह बताते हुए कहते हैं कि जीवन का मार्ग उन लोगों के लिए है जो परमेश्वर का अनुसरण करना चुनते हैं, और मृत्यु का मार्ग उन लोगों के लिए निश्चित है जो उसे अस्वीकार करते हैं।

जबकि सभी के लिए मृत्यु अपरिहार्य है - और अप्रत्याशित है - यहाँ परमेश्वर के वचन केवल इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि हमें अपने कर्मों के कारण मरना आवश्यक नहीं है। इसके द्वारा परमेश्वर का तात्पर्य है कि यदि आप किसी भी तरह के गलत काम में लिप्त हैं, या किसी कारणवश फँस गए हैं और बाद में इससे बाहर निकलने की आशा रखते हैं - हो सकता है, जब भी आपको छोड़ने का मन करे - यह एक चेतावनी है कि आपको पलायन का समय नहीं दिया जाएगा। मृत्यु आपको आपकी सोच से भी पहले पकड़ सकती है। लेकिन, जब आप पश्चाताप करेंगे और परमेश्वर की ओर मुड़ेंगे, तो आप जीवित रहेंगे। देखिये, यहाँ आपकी पसंद मायने रखती है!

बाइबल में एक अन्य वचन, यहेजकेल 18:32 में, परमेश्वर ने इसे बहुत स्पष्ट रूप से कहा है: "क्योंकि, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, जो मरे, उसके मरने से मैं प्रसन्न नहीं होता, इसलिये पश्‍चाताप करो, तभी तुम जीवित रहोगे।" यीशु को जीवनदाता इसलिए कहा जाता है। वह एक इंसान के रूप में इस पृथ्वी पर आए ताकि वह हमारे हर दर्द को समझे और उसका अनुभव करे और उसके बीच में हमें जीवन दे। वह इस सत्य को यूहन्ना 10:10 में घोषणा करता है, जहाँ वह कहते हैं कि वह स्वर्ग से नीचे आए ताकि हम "बहुतायत से जीवन" पाएं। आप सोच रहे होंगे कि यीशु जीवन को इतना महत्व क्यों देते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सारी सृष्टि की खूबसूरती जीने और उनकी महिमा करने में है। वह परमेश्वर हैं, फिर भी हमारी परवाह करते हैं और हमसे प्यार करते हैं - ताकि हम भी उनसे प्यार कर सकें और उनके लिए जी सकें। व्यवस्थाविवरण 30:19 में इसे खूबसूरती से अभिव्यक्त किया गया है, जहाँ हम पढ़ते हैं: "मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे सामने इस बात की साक्षी बनाता हूँ, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले,..."

हमारे लिए अच्छी जिंदगी जीना परमेश्वर की इच्छा है। कठिनाइयाँ, चुनौतियाँ और परेशानियाँ हमेशा रहेंगी। हर किसी के पास बहुत कुछ है! लेकिन, खुश रहें और खुद से कहें कि क्योंकि यीशु जीवित है, इसलिए आप भी जीवित रहेंगे। चिंता करना छोड़ दें। जीवन चुनें।
~ डॉ. पॉल दिनाकरन